श्रीकृष्ण का जन्म हिंदू धर्म की सबसे पवित्र और दिव्य घटनाओं में से एक माना जाता है।
बहुत समय पहले मथुरा में अत्याचारी राजा कंस का शासन था। एक भविष्यवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र ही उसका विनाश करेगा। यह सुनकर कंस ने देवकी और उनके पति वसुदेव को कारागार में बंद कर दिया।
देवकी के पहले सात पुत्रों को कंस ने जन्म लेते ही मार दिया।
लेकिन आठवें पुत्र का जन्म समय आते ही पूरी सृष्टि एक दिव्य घटना के लिए तैयार थी।
श्रावण कृष्ण अष्टमी की रात आधी रात को, कारागार में तेज दिव्य प्रकाश फैल गया।
देवकी ने भगवान से प्रार्थना की, और उसी क्षण भगवान विष्णु ने अपने दिव्य स्वरूप में जन्म लिया—शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए।
उन्होंने वसुदेव को आदेश दिया कि वे उन्हें गोकुल ले जाएँ।
चमत्कार होने लगे—
कारागार के द्वार अपने-आप खुल गए,
पहरेदार गहरी नींद में सो गए,
और तेज वर्षा में भी शेषनाग ने अपने फन फैलाकर बालक कृष्ण की रक्षा की।
वसुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को बहती यमुना पार कर गोकुल पहुँचाया और वहाँ नंद बाबा और यशोदा माता की पुत्री से उनका अदला–बदली कर दी।
जब कंस ने उस कन्या को मारने की कोशिश की, तो वह योगमाया बनकर आकाश में प्रकट हुई और बोली—
“तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है!”
इस प्रकार, गोकुल में श्रीकृष्ण ने अपना बाल्यकाल व्यतीत किया और आगे चलकर अधर्म का नाश तथा धर्म की स्थापना की।

